प्रभुविश्वासी,प्रभुप्रेमी,शरणागत! 36(अ) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
45:28
भगवान्में जो ऐश्वर्य,सौन्दर्य,माधुर्य है वो मानवमें भी है। 36(ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
58:50
भूखसे(दु:खसे) और भोजनसे(सुखसे) से अपना मूल्य बढ़ाओ। - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
46:21
सुखियोंमें उदारता और दु:खियोंमें त्याग नहीं रहता। 38(b) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
59:38
जप,तप,दान,भजन में अपने सुख देखना राक्षसी स्वभाव है। 39(अ) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
8:28
Manav Seva Sangh, Vrindavan
40:30
कर्म का फल अविनाशी नहीं होता। 40(अ) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
27:26
अनन्तकी प्रियतासे अनन्तको रस मिलता है। 26(ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
28:17