जप,तप,दान,भजन में अपने सुख देखना राक्षसी स्वभाव है। 39(अ) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
58:50
भूखसे(दु:खसे) और भोजनसे(सुखसे) से अपना मूल्य बढ़ाओ। - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
26:10
वास्तविक विपत्ति क्या है? कुन्ती ने भगवान् से क्यों मांगी विपत्तियां।। SHRI RAJENDRA DAS JI MAHARAJ।
20:57
मुझे कुछ नहीं चाहिये,प्रभु मेरा अपना है,सबकुछ प्रभु का है। 39(ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
17:40
करना और होना | पूज्यपाद ब्रह्मलीन स्वामी शरणानंदजी Swami Sharnanandji
8:28
Manav Seva Sangh, Vrindavan
54:25
दुःख निवृत्ति के उपाय
30:35
प्रेमीजन कृप्या यह प्रवचन सुनना न चुकें। 29(अ) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
2:30:40